नवरात्रि 2024: चैत्र शुक्ल नवरात्रि के पावन अवसर पर कलश स्थापना से पूजन प्रारम्भ
1. कलश स्थापना की विधि- ( kalash sthapna)
– कलश स्थापना, जिसे घट स्थापना भी कहा जाता है, यह नवरात्रि के पहले दिन की शुरुआत में की जाती है।
– इसके लिए, एक तांबे या मिट्टी के घड़े को प्रयोग करते है|
– यह स्थापना पहले दिन का महत्वपूर्ण कार्य है क्योंकि इसमें देवी दुर्गा जी की मूर्ति भी नौ दिन के लिए स्थापित की जाती है।
यहाँ पर इस कलश स्थापना की पूरी विधि का विस्तार से वर्णन किया जा रहा है |
- क . स्थापना की जगह और स्थान-
– कलश के लिए पूर्व या पश्चिम दिशा का ध्यान रख कर स्थान निश्चत किया जाता है|
– स्थान घर के मुख्य द्वार पर, या पूजा कक्ष में कलश को स्थापित किया जाता है।
– स्थान को पवित्र और साफ सुथरा रखने का विशेष ध्यान रखा जाता है।
- ख . पूजन की विधि-
– पूर्व आचमन के बाद, उस स्थान का पूजन करने के बाद कलश को पानी से भरा जाता है और उसमें स्वस्तिक को रोली से बनाया जाता है।
– कलश के ऊपर नारियल रखा जाता है |
- ग .लाल रंग का वस्त्र-
कलश के ऊपर नारियल ( coconut ) को लाल रंग के कपड़े मे लपेटा जाता है जो प्राकृतिक शक्ति को प्रदर्शित करता है।
- घ . रंगोली (Rangoli ) और दीपक-
– कलश के आसपास रंगोली बनाई जाती है और उसमें मंगलकारी चिन्ह जैसे स्वास्तिक या ॐ बनाए जाते हैं।
– उसी के पास मे एक दीपक जलाकर माता दुर्गा की स्तुति की जाती है|
- ड. बालू और जौं का प्रयोग –
-स्वच्छ बालू मे जौं को मिलाकर कलश को रखने से पहले उसे नीचे बिछ दिया जाता है|
-उस पर जल का छिड़काव कर के कलश को अंतिम रूप मे स्थापित कर दिया जाता है |
-मंत्र उच्चारण के साथ कलश का विधिवत पूजन किया जाता है , इसे किसी पंडित या पुजारी की उपस्थित मे ही करें तो ज्यादा शुभ माना जाता है|
2. पूजन की विधि-
पूजन के लिए पंडित व यजमान ध्यानपूर्वक मंत्रों का उच्चारण करते हैं। मंत्रों में अनेक प्रभावशाली मंत्र होते हैं जैसे “ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे” आदि। दुर्गा पूजा को आरंभ करते समय, निम्नलिखित विधि का पालन किया जाता है:-
- 1. आचमन-
– पूजा की शुरुआत में जल या गंगाजल से मूर्तियों का आचमन किया जाता है। यह पवित्रता और शुद्धता का संकेत होता है।
-इसके बाद फूल चढ़ते हैं और रोली लगाई जाती है |
- 2. फल प्रसाद-
– फल या मिठाई का प्रसाद देवी माँ को अर्पित किया जाता है। इससे पूजन का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
-इसमे केले और मीठा जिसमे अन्न का प्रयोग किया गया हो को समर्पित करते हैं |
- 3. रंगोली (Rangoli ), तिलक और फूल
– पूजा स्थल के चारों ओर रंगोली बनाई जाती है, जो सौभाग्य और खुशियों का प्रतीक है।
– सभी पूजा करने वालों को तिलक लगाया जाता है, व सिर पर रुमाल रखने के लिए कहा जाता है |
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- 4. आरती-
– पूजा के अन्त में, दीपक को जलाकर माँ दुर्गा की आरती गाई जाती है।
– यह देवी की महिमा का का गुणगान है जिससे उन्हे खुश किया जाता है |
-इसमे घंटी घंटा शंख नगाड़े आदि बजाए जाते हैं |
- 5. आवाहन मंत्र-
– दुर्गा माँ के आवाहन के लिए विशेष मंत्रों का उच्चारण किया जाता है, जो उन्हें आमंत्रित करते हैं।
– यह मंत्र भक्ति और समर्पण का प्रतीक है जिसमे माँ की कृपा बने रहने की प्रार्थना की जातीय है |
- 6. स्तुति-
– इसमे दुर्गा माँ की स्तुति और आराधना की जाती है, साथ ही मंत्रों का उच्चारण भी किया जाता है।
-इसमे भक्त को हाथ जोड़ कर भक्ति भाव से बैठ कर सम्पूर्ण पूजन विधि का अनुसारण करना चाहिए है
– यह स्तुति भक्ति और समर्पण का अभिव्यक्ति है।
यह सब हिन्दू पूजन पद्धति की प्रक्रिया है। यह विधि धार्मिक भावना और समर्पण के साथ माँ दुर्गा के सामने श्रद्धालु की आस्था को प्रकट करती है|
3. सावधानियाँ –
दुर्गा पूजन के समय निम्नलिखित सावधानियाँ रखनी चाहिए:
1. शुद्धि और स्नान: पूजा करने से पहले नियमित रूप से स्नान करें और पवित्रता को बनाए रखने के लिए वस्त्र बदलें।
2. साफ-सुथरी: पूजा स्थल को साफ़ और सुथरा रखें। सभी पूजा सामग्री विधिवत तैयार रखें।
3. अन्न-दान: पूजा के समय अन्न-दान करें, विशेष रूप से गरीबों और गरीब बच्चों को।
4. ध्यान और स्मरण : पूजा के समय माँ दुर्गा जी के ध्यान में रहें और उनके चरणों में भक्ति और समर्पण की भावना को महसूस करें।
5. अन्य सावधानियाँ : पूजा के दौरान, अग्निकुंड मे सावधानी से आहुति डालें |
6. मंत्र उच्चारण : माँ दुर्गा के आवाहन के समय सही मंत्रों का उच्चारण करें |
7. ज्योति की निगरानी: पूजा के दौरान ज्योति को निरंतर जलाएं, जो शक्ति और प्रकाश का प्रतीक होता है। इसको खंडित होने नहीं देना है समय समय पर इसकी जांच करते रहना है |
8. अध्ययन और आध्यात्मिक अनुभव: पूजा के विधान को अध्ययन करें और उसे सही रूप से अपनाएं, और आध्यात्मिक अनुभव को गहराई से अनुभव करें।
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4. पूजन सामग्री- ( samagri list )
सामग्री में पुष्प, धूप, दीप, अक्षत, चौकी, नारियल, लाल कपड़ा, मिठाई, फल आदि शामिल होते हैं। फूलों में लाल, पीला, नीला आदि कलर्स का उपयोग किया जाता है। यह पर हम आपको एक सूची दे रहे है जिसको आप परचून या पूजा सामग्री वाली दुकान से निकलवा सकते है जिसको पंडित जी लिखवाते है। यह निम्न है —
- पूजन सामग्री-
1. कलश – 500 ग्राम
2. गंगाजल – 1 लीटर
3. रोली – 50 ग्राम
4. कलावा – 2 पीस
5. गोला – 50 ग्राम
6. मोली – 25 मीटर
7. सिक्के – 10
8. गुड़ – 200 ग्राम
9. सुपारी – 50 ग्राम
10. इलाइची – 25 ग्राम
11. लौंग – 25 ग्राम
12. धूप – 100 ग्राम
13. अगरबत्ती – 1 पैकेट
14. कपूर – 25 ग्राम
15. गुलाब जल – 1 बोतल
16. जटा नारियल -1 पीस
17. गंध – 25 ग्राम
18. फूल – 1 माला
19. फल – 5 प्रकार के 5-5
20. मिठाई – 500 ग्राम
21. दीपक – 1 पैक
22. चावल – 100 ग्राम
23. कुमकुम – 25 ग्राम
24. अबीर – 25 ग्राम
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- हवन सामग्री-
1. अग्निकुंड – 1
2. लोबान – 50 ग्राम
3. गोबर – 2 किलो
4. घी – 500 ग्राम
5. दर्भ – 1 बंच
6. चांदनी – 1 बोतल
7. गुड़ – 200 ग्राम
8. सुपारी – 50 ग्राम
9. इलाइची – 25 ग्राम
10. लौंग – 25 ग्राम
11. कपूर – 25 ग्राम
12. गुग्गल – 25 ग्राम
13. हवन समिधा – 1 पैकेट
14. वस्त्र – 2 मीटर
15. फल – 5 प्रकार के 5-5
16. अभिषेक का पानी – 1 लीटर
17. धूप – 100 ग्राम
18. अगरबत्ती – 1 पैकेट
19. गुलाब जल – 1 बोतल
20. पुष्प – 1 माला
21. सुगंधित तेल – 50 मिलीलीटर
22. फूल – 1 माला
23. सुर्योदय की चांदनी – 1 बोतल
24. कोयल की अंगिया – 1
25. चावल – 100 ग्राम
जो चीजें आपको न मिले उसके लिए पंडित जी को जरूर सूचित कर दें पूजन से पहले ही |
5. अखंड ज्योति- (akhand jyoti )
– अखंड ज्योति पूजन का एक महत्वपूर्ण अंग होता है जो पूजन के दौरान जलाई जाती है।
– यह ज्योति सतत प्रकाशित रहती है और घर में शुभता और निरन्तरता, साधना, स्थिरता और शांति तथा जीवन की उत्कृष्टता का प्रतीक है ।
-अखण्ड ज्योति मे आप को शुद्ध घी का उपयोग करना चाहिए , घी को जलने की आवश्यकता के अनुसार आप प्रयोग कर सकते है |
-अखंड ज्योति को पूजा स्थल पर सावधानीपूर्वक रखना चाहिए। यह शीशे के आवरण में नहीं रखा जाता है, बल्कि उसे तांबे के लोटे के ऊपर जल भरकर रखा जाता है। अधिकांश मंदिरों में, यह ज्योति आसपास रंगोली के बीच में रखी जाती है।
-अखंड ज्योति को जलाने के समय, आप “जय जगदंबे” या “जय माता दी” जैसे मंत्रों का उच्चारण कर सकते हैं। इसके साथ ही, आप दीप प्रज्वलन मंत्र का जप भी कर सकते हैं, जैसे “जले ज्वाला थले ज्वाला….” और “दीप ज्योति परम ज्योति….”।
6. रंगोली (Rangoli ) –
नवरात्रि के पहले दिन रंगोली बनाना एक प्रमुख रिवाज है | क्रिएटिव और प्रतिभाशाली रंगोलियाँ जैसे देवी दुर्गा का चित्र, फूलों का हार, रंगीन पत्तियाँ आदि बनाई जाती हैं।
पूजा में उपयोग की जाने वाली रंगोली विशेष रूप से पूजा के अवसर पर धर्मिक और आध्यात्मिक भावनाओं को दर्शाती है। इसके माध्यम से हम ईश्वर के प्रति अपनी श्रद्धा और भक्ति का प्रकटीकरण करते हैं। रंगोली का निर्माण शुभ और प्रसन्नता की भावना को दर्शाता है। इसका आकर्षण और विविधता हर किसी को प्रेरित करती है। इस अवसर पर रंगोली में देवी दुर्गा की छवि, त्रिशूल, ओम या स्वास्तिक का चित्रण किया जा सकता है। इससे न केवल घर को सजावट दी जाती है,बल्कि इससे धार्मिक भावना का प्रतीक भी बनता है।
रंगोली बनाने के लिए उपयोग किए जाने वाली सामग्री में रंग, रंगों की थाली, रंगों की बोतलें, रंगों का छिड़काव, चावल, पूजन सामग्री आदि शामिल होती है। रंगोली को बनाते समय ध्यान रखना चाहिए कि वह साफ सुथरी, आकर्षक और सुंदर हो। आध्यात्मिक रंगोली का निर्माण करते समय शुभ और पौधे का आकार चित्रित किया जा सकता है, जो आत्मा को शांति और समृद्धि का अनुभव कराता है।
इस प्रकार, रंगोली का निर्माण आध्यात्मिक और धार्मिक आयाम को बढ़ाता है, और उसे बनाने के लिए उपयोग की जाने वाली सामग्री भी सावधानीपूर्वक चयनित किया जाना चाहिए।
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7. वैज्ञानिक प्रभाव-
– नवरात्रि में कलश स्थापना और पूजन का वैज्ञानिक महत्व भी होता है जो आत्मिक शुद्धि, मानसिक शांति, और आरोग्य को बढ़ावा देता है।
– पूजा के दौरान धूप, दीप, और अखंड ज्योति का प्रयोग भी वातावरण को शुद्ध करता है।
-पूजा का महत्व वैज्ञानिक, सामाजिक, शारीरिक, और आध्यात्मिक रूप से भी होता है न की केवल इसका धार्मिक महत्व है।
1. वैज्ञानिक रूप से: ध्यान और मन्त्र जप करने से ध्यान की शक्ति बढ़ती है, स्थिरता आती है, और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है। ध्यान और प्रार्थना करने से शान्ति और ऊर्जा का संतुलन बना रहता है, जो शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है।
2.धार्मिक रूप से: पूजा करने से व्यक्ति अपने ईश्वर के प्रति श्रद्धा, और भक्ति का अनुभव करता है। यह धार्मिक समृद्धि, और मानवता की भावना को बढ़ावा देता है।
3. सामाजिक रूप से: पूजा करने से समाज में सामंजस्य, सामर्थ्य और समरसता बढ़ती है। समुदाय में एकता और संबंधों को मजबूती मिलती है।
4. शारीरिक रूप से: ध्यान और पूजा करने से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है। यह स्थिरता, ऊर्जा, और सकारात्मकता को बढ़ावा देता है।
5. आध्यात्मिक रूप से: पूजा करने से आत्मा का संयम, शांति, और स्थिरता बनी रहती है। यह आत्मा को ईश्वर के साथ जोड़ने का माध्यम होता है।
माता दुर्गा की पूजा करने से विजय, शक्ति, और समृद्धि की प्राप्ति होती है। इससे समाज में अच्छाई, समरसता का संदेश फैलता है।
इस प्रकार, पूजा करने से व्यक्ति का शारीरिक, मानसिक, और आध्यात्मिक रूप से विकसित होता है, जो उसे जीवन में संतुष्टि और सफलता की ओर ले जाता है। यह एक सांस्कृतिक, आध्यात्मिक, और सामाजिक प्रक्रिया है जो हमें संतुलन, स्थिरता, और समृद्धि की दिशा में आगे बढ़ने में मदद करती है।
अन्य पूछे जाने वाले प्रश्न –
नवरात्रि में कलश स्थापना का क्या महत्व है?
नवरात्र में कलश स्थापना कैसे की जाती है?
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नवरात्र में कलश स्थापना का समय क्या है?
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