( दुर्गा आरती,दुर्गा चालीसा,मंत्र,स्तुति, दुर्गा सप्तशती पाठ, दुर्गा स्त्रोत्रम )
1. || दुर्गा जी की आरती ||
- जय अंबे गौरी…
जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी ।
तुमको निशदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवरी ॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥
मांग सिंदूर विराजत, टीको मृगमद को ।
उज्ज्वल से दोउ नैना, चंद्रवदन नीको ॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥
कनक समान कलेवर, रक्ताम्बर राजै ।
रक्तपुष्प गल माला, कंठन पर साजै ॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥
केहरि वाहन राजत, खड्ग खप्पर धारी ।
सुर-नर-मुनिजन सेवत, तिनके दुखहारी ॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥
कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती ।
कोटिक चंद्र दिवाकर, सम राजत ज्योती ॥
ॐजय अम्बे गौरी..॥
शुंभ-निशुंभ बिदारे, महिषासुर घाती ।
धूम्र विलोचन नैना, निशदिन मदमाती ॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥
चण्ड-मुण्ड संहारे, शोणित बीज हरे ।
मधु-कैटभ दोउ मारे, सुर भयहीन करे ॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥
ब्रह्माणी, रूद्राणी, तुम कमला रानी ।
आगम निगम बखानी, तुम शिव पटरानी ॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥
चौंसठ योगिनी मंगल गावत, नृत्य करत भैरों ।
बाजत ताल मृदंगा, अरू बाजत डमरू ॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥
तुम ही जग की माता, तुम ही हो भरता|
भक्तन की दुख हरता, सुख संपति करता ॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥
भुजा चार अति शोभित, वर मुद्रा धारी ।
मनवांछित फल पावत, सेवत नर नारी ॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥
कंचन थाल विराजत, अगर कपूर बाती। श्रीमालकेतु में राजत, कोटि रतन ज्योती ॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥
श्री अंबेजी की आरति, जो कोइ नर गावे ।
कहत शिवानंद स्वामी, सुख-संपति पावे ॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥
जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी।
जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी।
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- अम्बे तू है जगदम्बे काली
अम्बे तू है जगदम्बे काली, जय दुर्गे खप्पर वाली,
तेरे ही गुण गावें भारती, ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती।
अम्बे तू है जगदम्बे काली, जय दुर्गे खप्पर वाली,
तेरे ही गुण गावें भारती, ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती।
तेरे भक्त जनो पर माता भीर पड़ी है भारी।
दानव दल पर टूट पड़ो मां करके सिंह सवारी॥
सौ-सौ सिहों से बलशाली, है अष्ट भुजाओं वाली,
दुष्टों को तू ही ललकारती।
ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती॥
अम्बे तू है जगदम्बे काली, जय दुर्गे खप्पर वाली,
तेरे ही गुण गावें भारती, ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती।
माँ-बेटे का है इस जग में बड़ा ही निर्मल नाता।
पूत-कपूत सुने है पर ना माता सुनी कुमाता॥
सब पे करूणा दर्शाने वाली, अमृत बरसाने वाली,
दुखियों के दुखड़े निवारती।
ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती॥
अम्बे तू है जगदम्बे काली, जय दुर्गे खप्पर वाली,
तेरे ही गुण गावें भारती, ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती।
नहीं मांगते धन और दौलत, न चांदी न सोना।
हम तो मांगें तेरे चरणों में एक छोटा सा कोना॥
सबकी बिगड़ी बनाने वाली, लाज बचाने वाली,
सतियों के सत को संवारती।
ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती॥
अम्बे तू है जगदम्बे काली, जय दुर्गे खप्पर वाली,
तेरे ही गुण गावें भारती, ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती।
चरण शरण में खड़े तुम्हारी, ले पूजा की थाली।
वरद हस्त सर पर रख दो माँ संकट हरने वाली॥
माँ भर दो भक्ति रस प्याली, अष्ट भुजाओं वाली
भक्तों के कारज तू ही सारती।
ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती॥
अम्बे तू है जगदम्बे काली, जय दुर्गे खप्पर वाली,
तेरे ही गुण गावें भारती, ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती।
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5. दुर्गा स्त्रोतम् –
अयि गिरिनन्दिनि नन्दितमेदिनि विश्वविनोदिनि नन्दिनुते
गिरिवरविन्ध्यशिरोऽधिनिवासिनि विष्णुविलासिनि जिष्णुनुते ।
भगवति हे शितिकण्ठकुटुम्बिनि भूरिकुटुम्बिनि भूरिकृते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १ ॥
सुरवरवर्षिणि दुर्धरधर्षिणि दुर्मुखमर्षिणि हर्षरते
त्रिभुवनपोषिणि शङ्करतोषिणि किल्बिषमोषिणि घोषरते
दनुजनिरोषिणि दितिसुतरोषिणि दुर्मदशोषिणि सिन्धुसुते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ २ ॥
अयि जगदम्ब मदम्ब कदम्ब वनप्रियवासिनि हासरते
शिखरि शिरोमणि तुङ्गहिमलय शृङ्गनिजालय मध्यगते ।
मधुमधुरे मधुकैटभगञ्जिनि कैटभभञ्जिनि रासरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ३ ॥
अयि शतखण्ड विखण्डितरुण्ड वितुण्डितशुण्द गजाधिपते
रिपुगजगण्ड विदारणचण्ड पराक्रमशुण्ड मृगाधिपते ।
निजभुजदण्ड निपातितखण्ड विपातितमुण्ड भटाधिपते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ४ ॥
अयि रणदुर्मद शत्रुवधोदित दुर्धरनिर्जर शक्तिभृते
चतुरविचार धुरीणमहाशिव दूतकृत प्रमथाधिपते ।
दुरितदुरीह दुराशयदुर्मति दानवदुत कृतान्तमते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ५ ॥
अयि शरणागत वैरिवधुवर वीरवराभय दायकरे
त्रिभुवनमस्तक शूलविरोधि शिरोऽधिकृतामल शूलकरे ।
दुमिदुमितामर धुन्दुभिनादमहोमुखरीकृत दिङ्मकरे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ६ ॥
अयि निजहुङ्कृति मात्रनिराकृत धूम्रविलोचन धूम्रशते
समरविशोषित शोणितबीज समुद्भवशोणित बीजलते ।
शिवशिवशुम्भ निशुम्भमहाहव तर्पितभूत पिशाचरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ७ ॥
धनुरनुषङ्ग रणक्षणसङ्ग परिस्फुरदङ्ग नटत्कटके
कनकपिशङ्ग पृषत्कनिषङ्ग रसद्भटशृङ्ग हताबटुके ।
कृतचतुरङ्ग बलक्षितिरङ्ग घटद्बहुरङ्ग रटद्बटुके
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ८ ॥
सुरललना ततथेयि तथेयि कृताभिनयोदर नृत्यरते
कृत कुकुथः कुकुथो गडदादिकताल कुतूहल गानरते ।
धुधुकुट धुक्कुट धिंधिमित ध्वनि धीर मृदंग निनादरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ९ ॥
जय जय जप्य जयेजयशब्द परस्तुति तत्परविश्वनुते
झणझणझिञ्झिमि झिङ्कृत नूपुरशिञ्जितमोहित भूतपते ।
नटित नटार्ध नटी नट नायक नाटितनाट्य सुगानरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १० ॥
अयि सुमनःसुमनःसुमनः सुमनःसुमनोहरकान्तियुते
श्रितरजनी रजनीरजनी रजनीरजनी करवक्त्रवृते ।
सुनयनविभ्रमर भ्रमरभ्रमर भ्रमरभ्रमराधिपते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ११ ॥
सहितमहाहव मल्लमतल्लिक मल्लितरल्लक मल्लरते
विरचितवल्लिक पल्लिकमल्लिक झिल्लिकभिल्लिक वर्गवृते ।
शितकृतफुल्ल समुल्लसितारुण तल्लजपल्लव सल्ललिते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १२ ॥
अविरलगण्ड गलन्मदमेदुर मत्तमतङ्ग जराजपते
त्रिभुवनभुषण भूतकलानिधि रूपपयोनिधि राजसुते ।
अयि सुदतीजन लालसमानस मोहन मन्मथराजसुते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १३ ॥
कमलदलामल कोमलकान्ति कलाकलितामल भाललते
सकलविलास कलानिलयक्रम केलिचलत्कल हंसकुले ।
अलिकुलसङ्कुल कुवलयमण्डल मौलिमिलद्बकुलालिकुले
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १४ ॥
करमुरलीरव वीजितकूजित लज्जितकोकिल मञ्जुमते
मिलितपुलिन्द मनोहरगुञ्जित रञ्जितशैल निकुञ्जगते ।
निजगणभूत महाशबरीगण सद्गुणसम्भृत केलितले
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १५ ॥
कटितटपीत दुकूलविचित्र मयुखतिरस्कृत चन्द्ररुचे
प्रणतसुरासुर मौलिमणिस्फुर दंशुलसन्नख चन्द्ररुचे
जितकनकाचल मौलिमदोर्जित निर्भरकुञ्जर कुम्भकुचे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १६ ॥
विजितसहस्रकरैक सहस्रकरैक सहस्रकरैकनुते
कृतसुरतारक सङ्गरतारक सङ्गरतारक सूनुसुते ।
सुरथसमाधि समानसमाधि समाधिसमाधि सुजातरते ।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १७ ॥
पदकमलं करुणानिलये वरिवस्यति योऽनुदिनं सुशिवे
अयि कमले कमलानिलये कमलानिलयः स कथं न भवेत् ।
तव पदमेव परम्पदमित्यनुशीलयतो मम किं न शिवे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १८ ॥
कनकलसत्कलसिन्धुजलैरनुषिञ्चति तेगुणरङ्गभुवम्
भजति स किं न शचीकुचकुम्भतटीपरिरम्भसुखानुभवम् ।
तव चरणं शरणं करवाणि नतामरवाणि निवासि शिवम्
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १९ ॥
तव विमलेन्दुकुलं वदनेन्दुमलं सकलं ननु कूलयते
किमु पुरुहूतपुरीन्दु मुखी सुमुखीभिरसौ विमुखीक्रियते ।
मम तु मतं शिवनामधने भवती कृपया किमुत क्रियते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ २० ॥
अयि मयि दीन दयालुतया कृपयैव त्वया भवितव्यमुमे
अयि जगतो जननी कृपयासि यथासि तथानुमितासिरते ।
यदुचितमत्र भवत्युररीकुरुतादुरुतापमपाकुरुते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ २१ ॥
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6. दुर्गा सप्तशती पाठ
1. दुर्गा सप्तशती: हिंदू धर्म का महत्वपूर्ण पाठ
“दुर्गा सप्तशती” एक प्राचीन हिंदू पौराणिक ग्रंथ है जो मां दुर्गा की महिमा, शक्ति, और क्रोध को वर्णित करता है। इस ग्रंथ में मां दुर्गा के विविध रूपों की महिमा का वर्णन किया गया है, जिन्हें शक्तिपीठ कहा जाता है। इस ग्रंथ में 700 श्लोक हैं, जो तीन अध्यायों में विभाजित हैं। प्रत्येक अध्याय में मां दुर्गा के विभिन्न रूपों का वर्णन किया गया है, जिनमें सर्वमंगला, ब्रह्मचारिणी, चंडी, वराही, कूष्मांडा, स्कंदमाता, और कात्यायनी आदि शामिल हैं। इन रूपों की पूजा से भक्त शक्ति को प्राप्त करते हैं और दुर्गा जी की कृपा को पाते हैं। ग्रंथ में देवी के शक्तिशाली रूप का गान किया गया है जो राक्षसों का विनाश करता हैं और भक्तों को संरक्षित रखता हैं। इसे पढ़ने और उपासना करने से भक्त आत्मविश्वास और शांति को प्राप्त करते हैं, जिससे उनका जीवन समृद्धि और सम्पन्नता से भर जाता है।
2. 108 नामों का उल्लेख –
यहाँ देवी के 108 नामों का बताया गया है-
आर्या, आद्या, अनंता, अपर्णा, अभव्या, अनेकवर्णा, अनेकशस्त्रहस्ता, अनेकास्त्रधारिणी, अमेयविक्रमा, उत्कर्षिनी, उद्धारिणी, अनेकवर्णा, अनेकशस्त्रहस्ता, अनेकास्त्रधारिणी, ऐंद्री, क्रिया, क्रूरा, चामुंडा, चंडमुंडविनाशिनी, चिता, चित्तरूपा, चिंता, चित्रा, चंद्रघंटा, जया, दक्षकन्या, दक्षयज्ञविनाशिनी, देवमाता, दुर्गा, नित्या, निशुंभशुंभहननी, पाटला, पाटलावती, पट्टाम्बरपरिधाना, पिनाकधारिणी, बुद्धि, बुद्धिदा, भवानी, भवमोचनी, भवप्रीता, भव्या, ब्राह्मी, बलप्रदा, बहुला, बहुलप्रिया, महातपा, महोदरी, महिषासुरमर्दिनी, मातंगी, मधुकैटभहंत्री, मन, माहेश्वरी, लक्ष्मी, रत्नप्रिया, वर्तिनी, वाराही, वृषारूढा, वनदुर्गा, सर्वमंत्रमयी, सर्वशास्त्रमयी, सर्वविद्या, सर्वास्त्रधारिणी, सर्वसुरविनाशा, सर्वदानवघातिनी, सर्ववाहनवाहना, सत्या, सत्यानंदस्वरुपिणी, सती, साध्वी, सुंदरी, सुरसुंदरी, सृष्टि, शक्ति, शूलधारिणी, शाम्भवी, महतपा, मुक्तकेशी, यति, युवती, एककन्या, कुमारी, कैशोरी, वृद्धमाता, अप्रौढ़ा, प्रौढ़ा, त्रिनेत्रा. महाबला, अग्निज्वाला, रौद्रमुखी, कालरात्रि, तपस्विनी, नारायणी, भद्रकाली, विष्णुमाया, जलोदरी, शिवदुती, कराली, अनंता, परमेश्वरी, कात्यायनी, सावित्री, प्रत्यक्षा और ब्रह्मावादिनी।
3. पाठ के फायदे-
दुर्गा सप्तशती का नियमित पाठ करने से भक्त को शक्ति, सुरक्षा, और सफलता की प्राप्ति होती है, और उनके जीवन में धर्म, अर्थ, काम, और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
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7. प्रसिद्धि पंक्तियाँ –
1. “देवि पूजि पद कमल”-
अर्थ- माँ दुर्गा देवी के कमाल के समान चरणों अर्थात पाँवों की मे पूजा करता हूँ ।
2. “जग जननी जय जय मां”-
– अर्थ: “हे जगजननी माँ, जय हो, जय हो”। यह चौपाई माँ दुर्गा की जय घोषणा करती है।
3. “या देवी सर्वभूतेषु”
– अर्थ: “हे माँ, सभी प्राणियों में तुम्हें नमस्कार है”। इस चौपाई में माँ दुर्गा की प्रशंसा की जाती है।
4. “जयति जयति कालि”
– अर्थ: “हे काली माँ, जय हो, जय हो”। यह चौपाई काली माँ की जय का गुणगान करती है।
5. “चामुण्डा अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र”
– अर्थ: “हे चामुण्डा माँ, तुम्हारे 108 नामों की स्तुति हो”। यह चौपाई माँ चामुण्डा के नामों का उल्लेख करती है।
8. नवरात्रि पूजन के समय रंगों का विधान –
यहाँ पर दिन के अनुसार जो रंग लिखा है उस रंग का वस्त्र पहन कर आप देवी की पूजा करें |
| दिन | देवी | रंग |
|——- |——— |——–|
| दिन 1 | शैलपुत्री | पीला |
| दिन 2 | ब्रह्मचारिणी | सफेद |
| दिन 3 | चंद्रघंटा | पीला |
| दिन 4 | कूष्माण्डा | लाल |
| दिन 5 | स्कंदमाता | नीला |
| दिन 6 | कात्यायनी | लाल |
| दिन 7 | कालरात्रि | काला |
| दिन 8 | महागौरी | सफेद |
| दिन 9 | सिद्धिदात्री | पीला |
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अन्य पूछे जाने वाले प्रश्न –
नवरात्रि में कलश स्थापना का क्या महत्व है?
नवरात्र में कलश स्थापना कैसे की जाती है?
नवरात्रि पूजन के लिए क्या क्या सामग्री चाहिए?
नवरात्र में कलश स्थापना का समय क्या है?
कलश पूजा का क्या महत्व है?
कलश स्थापना क्यों की जाती है?
पूजा के बाद कलश नारियल का क्या करें?
कलश को घर में कहां रखते हैं?
कलश पूजा घर पर कैसे करें?
नवरात्रि के आखिरी दिन पूजा कैसे करें?
कलश स्थापना विधि और मंत्र
कलश स्थापना में नारियल कैसे रखें
नवरात्रि पूजन सामग्री लिस्ट पीडीऍफ़
कलश स्थापना मंत्र
नवरात्रि पूजा सामग्री लिस्ट
कलश स्थापना विधि और मंत्र PDF
कलश पूजन सामग्री
कलश पूजन विधि मंत्र सहित
दुर्गा सप्तशती का पाठ कितने दिन में खत्म करना चाहिए
दुर्गा सप्तशती पाठ करने के नियमदुर्गा सप्तशती पाठ के चमत्कार
दुर्गा सप्तशती का पाठ किस समय करना चाहिए
दुर्गा सप्तशती पाठ 13 अध्याय
दुर्गा सप्तशती का पाठ हिंदी में करें या संस्कृत मेंदुर्गा सप्तशती पाठ के अनुभव
दुर्गा सप्तशती पाठ PDF
कलश स्थापना की प्रभावकारी विधि को जानिए